आदम और हव्वा…
लालू को निमंत्रित करने के बाद आईआईएम को यह प्रायश्चित् तो करना ही था…
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लालू को निमंत्रित करने के बाद आईआईएम को यह प्रायश्चित् तो करना ही था…
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जरूर मिलेगा निमंत्रण.
देखा गया है, सुझबुझ व अनुभव ही असली डिग़्री है. रिलायंस को खड़ा करने वाला कितना पढ़ा-लिखा था?
टिप्पणी द्वारा संजय बेंगाणी — फ़रवरी 6, 2007 @ 10:36 पूर्वाह्न
क्या यह खबर हास्य व्यंग्य के लिए थी? मुझे लगता है, मालतीबेन को शाबासी देनी चाहिए.
टिप्पणी द्वारा संजय बेंगाणी — फ़रवरी 6, 2007 @ 10:37 पूर्वाह्न
?
टिप्पणी द्वारा SHUAIB — फ़रवरी 6, 2007 @ 11:15 पूर्वाह्न
बहुत प्रेरणादायक
टिप्पणी द्वारा maithily — फ़रवरी 6, 2007 @ 11:28 पूर्वाह्न
hmm…
मालतीबेन के लिए व्यंग्य उपयुक्त नही लग रहा… माफी चाहता हुँ.. अन्यथा ना लें
टिप्पणी द्वारा pankaj बेंगाणी — फ़रवरी 6, 2007 @ 12:57 अपराह्न
व्यंग्य मालती बेन पर नहीं है. व्यंग्य लालू पर है – पर जरा छिपा हुआ है. क्योंकि लालू को पहले निमंत्रण मिला था जिसकी चर्चा ज्यादा हुई थी. यूँ प्रबंधन संस्थानों में ऐसे सफल व्यक्तियों के अनुभवों को सुनना सुनाया जाना नया नहीं है. फिर भी, अगर मैं व्यंग्य को सही ढंग से प्रस्तुत नहीं कर पाया तो माफ़ी चाहता हूँ, और आप सब कहें तो इस पोस्ट को मिटा भी सकता हूँ.
भविष्य में विषेश ध्यान रखा जाएगा. एक बार फिर माफ़ी की गुज़ारिश…
टिप्पणी द्वारा raviratlami — फ़रवरी 6, 2007 @ 1:49 अपराह्न
इतिहास के पन्नों को फाड़ा नहीं जाता. इन्हें सहेजा जाता है. इसे यहीं रहने दें. सही है मालती बेन के योगदान को देख यह उपयुक्त नहीं है, मगर आपका स्पष्टीकरण काफी है मेरी समझ से.
टिप्पणी द्वारा समीर लाल — फ़रवरी 6, 2007 @ 2:25 अपराह्न
🙂
टिप्पणी द्वारा Shrish — फ़रवरी 7, 2007 @ 6:57 पूर्वाह्न
समीर जी,
आपका कहना भी ठीक है, परंतु नीचे एक और टिप्पणी डाल कर इसे स्पष्ट कर दिया है.
श्रीश जी,
🙂
टिप्पणी द्वारा raviratlami — फ़रवरी 7, 2007 @ 7:09 पूर्वाह्न
वैसे आपके आदम और हव्वा जैसी टिप्पणियां करते हैं उनका उपयोग किसी भी प्रबंधन संस्थान के लिये मूल्यवान हो सकता है। 🙂
टिप्पणी द्वारा जगदीश भाटिया — फ़रवरी 7, 2007 @ 7:11 पूर्वाह्न
जगदीश भाई, धन्यवाद 🙂
टिप्पणी द्वारा raviratlami — फ़रवरी 7, 2007 @ 1:39 अपराह्न
🙂
टिप्पणी द्वारा Dr.bhawna — फ़रवरी 8, 2007 @ 7:56 पूर्वाह्न